गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मानसिक सहयोग

कभी-कभी बीमारी में डाक्टर और दवा से ज्यादा अपनों का अपनापन और मानसिक सहयोग ज्यादा ज़रूरी होता हैं |

यादें

जब हमारा कोई सगा या कोई अपना हमसे दूर चला जाता है तब जीवन भर के लिए उसकी अच्छी यादें हमेशा हमारे साथ रहती हैं और उसकी यही यादें हमारी जीने का सहारा बन जाती हैं |

समायोजन

जीवन कठिन है लेकिन अपनी तरफ से हम कितना समायोजन (Adjustment) कर रहे हैं , इस बात के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है | जब हम समन्वय और समायोजन को जीवन में अपनाते हैं तो जीना बहुत हद तक आसान हो जाता है | जो कार्य सिर्फ हमें करना ही है क्यों न हम उसे हँस कर ही करें |

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

दुनिया की हक़ीक़त --

जिसे ज़्यादा खाने को मिलता है , वही ज़्यादा भूखा रहता है इस दुनिया में |

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

हम खुद क्या है ?

हम अपने लिए हमेशा ही रामया सीतातलाशते रहते हैं पर पहले यह सोचना ज़रूरी है कि हम खुद सीताया रामहैं या नहीं |

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

समझ

बहुत कठिन होता है किसी भी इंसान को उसी के समझ से उसे समझना |

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सुद्धाचारवादी लोग

हममें ऐसे सैकड़ों सुद्धाचारवादी लोग है , जो गलती करने वालों तथा सन्मार्ग से बिचलित होनेवालों को बुरा कह कर उनका अपमान करते रहते है | पर उनके आत्मविश्वास तथा स्वाभिमान को चोट पहुंचाए बिना प्रेम तथा धैर्यपूर्वक उनके दोष बता कर उन्हें सही मार्ग पर लाने की क्षमता रखनेवाले हममें से कितने हैं ?

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

मानसिक संतुष्टि

कभी कभी कोई इंसान ऐसा होता है जो हमारे साथ 24X7 रहता है मानसिक सहयोग के रूप से | वो इंसान शारीरिक रूप से साथ देने वाले इंसान से भी ज़्यादा खास होता है क्योंकि मानसिक संतुष्टि हमे हर किसी से नहीं मिल सकती |

गलत राय

एकतरफा किसी की बातें सुनकर कभी हमे किसी दुसरें के प्रति अपनी गलत राय नहीं बनानी चाहिए क्योंकि अपने आपको सभी सही ही मानता है | ऐसे बहुत कम लोग होते है जो अपनी गलती को मानते है और उसे सुधारने की कौशिश करते है |

बेतुका

बेतुका लिखने से कोई प्रसिद्ध नहीं होता है | ऐसा कुछ ना लिखिए कि लोग आपकी नकारात्मकता से चर्चा करें |

समस्या का हल

हम हर समस्या का हल नही कर सकते , कभी ज्यादा बोल देते हैं तो कभी कम | कभी कुछ करते नही तो कभी कुछ ज्यादा ही कर देते हैं |

सीख यह मिली मुझे कि हर तार से पतंग नही उतारना चाहिए |

पीड़ा

अपने ग़म को बड़ा तराशा , पीड़ा में भी आनन्द आया |

बेखुदी

तिनका-तिनका मर रहे हैं खुशी बेखुदी खामोश सी इस दुनिया में |

गलतियों का सुधार

हम लोगों को अपनी की हुई गलतियों से दूसरों की गलतियों पर ज़्यादा नज़र रहती है | इसलिए हम अपनी गलतियों का सुधार कभी नहीं करते | अगर हम कुछ गलतियाँ करते हैं तब उन्हें स्वीकार कर के जीवन में आगे बढ़ जाना ही सही रहता है | नहीं तो खुद भी उलझे रहते हैं और दूसरे को भी उलझा देते हैं |

अनुभूति

जो बात किसी को अनुभूति द्वारा पता चली है , वह बात किसी अन्य को भी ठीक-ठीक तभी पता चल सकती है जब उसको भी वही अनुभूति हो |

फासला

तब उलझनों के मोड़ भी कम थे और ...ख्वाइश भी कम थी इसलिए ... फासला अक्सर कदमो से तय होता था |

इज्ज़त

खुद के अंदर हम सबको एक बार झांककर ज़रूर देखना चाहिए कि, लोग हमे प्यारऔर मनसे इज्ज़तकर रहे है या डरकर इज्ज़तदे रहे है ? अगर हमे लोग डरकर इज्ज़त दे रहे है तो उस इज्ज़तका कोई मूल्यनहीं है |

दर्द

सच तो यह है कि अब 'दर्द' ही हमारी 'जान' है ,

खुद 'ग़म सदा' हो कर भी 'खुशी बिखेरना' हमारा 'काम' है |

समायोजित

अगर कोई अपने आपको हर माहोल में समायोजित (Adjust) कर रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वो बेवकूफ है | यह उस व्यक्ति का गुण है | ऐसे बहुत कम इंसान होते है जो हर बात को सकरत्मकता से ले कर हर महोल में समायोजित (Adjust) कर के रहता है |

लिहाज़

अगर सामने वाला इंसान हमे पसंद ना हो तो उसकी हर एक छोटी छोटी बातों को भी हम बहुत बड़ा मुद्दा बनाते है | जबकि कई बातें तो ऐसी होती है जो पकड़ने लायक ही नहीं होती है और साथ ही जिसके विरोध करने का कोई अर्थ भी नहीं निकलता फिर भी हम अनायास विरोध करते है | और इसी में चक्कर अक्सर बड़े अपना बडप्पन भूल जाते है और छोटे अपना लिहाज़ |

मन से प्रत्साहित

जो व्यक्ति हमेशा दुसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार रहते है , वे कभी वास्तविक मैदान पर काम कर के देखे कार्य करते वक़्त यह त्रुटियाँ नज़र भी नहीं आएगी | कभी किसी को मन से प्रत्साहित कर के देखिये बहुत अच्छा लगता है |

दूसरों की गलतियों को क्या देखें !

हम खुद ही गलतियों की ढेर हैं , दूसरों की गलतियों को क्या देखें !

खुद ही सुधर नहीं पाये अभी तक , दूसरों का सुधार हम कैसे करें ?

आलोचना

जब हम सामाजिक कार्य करेंगे तो हमारा विरोध भी होगा और आलोचना भी | लेकिन इस डर से हम अपना काम करना छोड़ तो नहीं सकते | जो विरोध और आलोचना से डरते है वो सामाजिक कार्य के लिए वास्तविक मैदान पर ना ही उतरे तो ही सही है |

सोच

सोच ही इंसान को महान बनाती है |

खुले दिमाग

हम सब अपने आपको खुले दिमाग (Open Minded) वाले इंसान कहते है लेकिन देखा जाए तो हम बस तबतक के लिए Open Minded रहते है जब हम दूसरों से बात करते रहते है |सिर्फ उपदेश देने के लिए और अपने आपको सामने वाले के आगे बड़ा या महान साबित करने लिए यह खुलापन होने का एक ढोंग मात्र है | बाहर से घर पहुँचते पहुँचते पता नहीं हमारा खुले विचार कहाँ हवा हो जाते है !

ठोकर खाइये

जीवन में ठोकर खाइये, अपना अनुभव बढ़ाइए इससे दिल और दिमाग दोनों ही सख्त होता है फिर और जोश से सामाजिक कार्य करिए |

भावना और संवेदनशीलता

भावना और संवेदनशीलता हर एक इंसान में होती है | किसी में ज़्यादा तो किसी में कम | यह इंसान का स्व:धर्म है इसीलिए इंसानियत भी अभी तक बची हुयी है | चाहे हम कितना भी कठोर बनने की कौशिश क्यूँ न करे जीवन में कभी न कभी हम सब कमजोर पड़ जाते है | कब कौन किस मोड़ पर आकर भावुक हो जाए यह कह पाना मुश्किल है |

पिछड़ा वर्ग

पिछड़ा वर्ग एक ऐसा कामगार वर्ग है जो न तो सवर्ण है और न ही अस्पृश्य या आदीवासी | इसी बीच की स्थिति के कारण न तो इसे सवर्ण होने का लाभ मिल सका है और न ही निम्न या दलित होने का फायदा मिला |

सरलता

आज के जमाने में सरल होना भी दुखदायी हो गया है 
क्योंकि ...... सरलता को समझने वाले इंसानों की कमी हो गयी है |

हमारा ऐशों आराम

हम जिनके कमाए हुये पैसों पर ऐश करते है, कभी कभी उनकी दो पल की खुशी के बारे में हम सोचना भूल जाते है और उन्हें अपने हाथों की काठपुतली बनाकर नचाते है ताकि सिर्फ हमारा ऐशों आराम बना रहे |

सोमवार, 25 नवंबर 2013

व्यवहार

हमारा व्यवहार ही हमारे रिश्तों की नींव तय करता है |

हमारी सोच

वस्त्र हमारी बाहरी सुन्दरता और Smartness को दर्शाते है, लेकिन हमारी सोच हमारी आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करती है की असल में हम कितने सम-सामयिक हैं |

प्यार

हमें अपने आप से प्यार होना बहुत ज़रूरी है नहीं तो हम दूसरों में प्यार नहीं बाँट सकते |