मंगलवार, 18 नवंबर 2014

वक़्त बदलता गया, लोग बदलते गए ।

सभ्यता संस्कार सिर्फ उपदेशों में ढलते गए ।।
गुस्ताख़ दिल ने फिर से मांफ किया तुम्हें

फिर दिल तोड़ने का इजाज़त दिया तुम्हें ।।
कल रात फिर एक सुनेहरा सपना टुटा
तो क्या ... !

और भी कई रातें अभी बाकी है ।।

शनिवार, 8 नवंबर 2014

कई बार हम बहुत कौशिश करते है बिगड़े हालत को सुधारने की लेकिन हमारा चित्र अगर किसी के आगे पहले से ही ख़राब बन चुकी है तो उसे मिटाना अक्सर हर तरह की कौशिशों के बाद भी ज़्यादातर नामुमकिन ही होता है ।
जब कभी हम क़रीब से दूसरों कि ज़िन्दगी में गहराईयों से झाँक पाते हैंतो पता चलता है कहीं थोडा कम तो कहीं थोडा ज्यादा .... सभी के पास अपने हिस्से की परेशानियाँ चुनौतियां बनके खड़ी है ।।
हर एक छोटे-बड़े काम के लिए फ़ैमिली का सपोर्ट मिलना बहुत ज़रूरी होता है। हर एक बच्चे को अपने फ़ैमिली से ही पहली आस होती है। अगर बच्चा सही है और सही काम कर रहा हो तो उन्हें हमेशा उत्साहित करना चाहिए। वक़्त के साथ साथ परिवारों को अपनी परंपरागत चली आ रही कुछ रुढ़िवादी सोच को ज़रूर बदलना चाहिए, ताकि उनके बच्चे आगे बढ़ें, अपनी ख़्वाहिशों को पूरी करें और वो अपने जीवन को जियें ताकि हजारों में एक बनके उभरें ।।
आज आधुनिकता की दौड़ में फंसे संवेदनहीन परिवारों में दादा-दादी, नाना-नानी या तो आप्रासंगिक हो गये हैं, या फिर वृद्धाश्रमों में भेज दिये गये हैं। अगर कुछ सौभाग्यशाली बच गये हैं तो अपने घरों के एक कोने में सिमट कर रह गये हैं। क्योंकि उन्हें अपनी इज्ज़त और सर के ऊपर छत की फ़िक्र है। कहीं जीवन के इस अंतिम दौड़ में यह सहारा भी उनसे न छीन जाए ।।
अगर हम दूसरे से अपेक्षा रखते हैं कि वो हमारी बातों का क़द्र करें और सुनें, तो पहले हमें दूसरों की बातों का क़द्र करना चाहिए और सुनना चाहिए और साथ ही ये कला सीखनी चाहिए ।।